महाराष्ट्र के पालघर में बीते सप्ताह तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या के मामले में नया मोड़ आया है। इस घटना का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें दिखाई दे रहा है कथित तौर पर कुछ पुलिसवाले इन साधुओं को भीड़ के हवाले कर रहे हैं। जिसके बाद भीड़ ने इन साधुओं को पीट-पीटकर मार डाला। ये घटना मुंबई के पास पालघर जिले के कासा इलाके की है। जानकारी के अनुसार 16 अप्रैल गुरुवार रात में यहां से गुजरते वक्त इन साधुओं की गाड़ी खराब हो गई थी। इतने में पास में मौजूद भीड़ की नजर उन पर पड़ गई। लोगों ने पहले गाड़ी के साथ तोड़फोड़ की और उसके बाद तीनों साधुओं को मारना शुरू कर दिया। महाराष्ट्र पुलिस ने इस घटना को मॉब लिंचिंग का रंग दिया था, लेकिन वीडियो में दिखाई दे रहा है कि कई पुलिसवाले घटना की जगह पर मौजूद हैं और उन्होंने साधुओं को बचाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। यह जानकारी भी सामने आई है कि तीनों साधु अपने गुरु के अंतिम संस्कार के लिए गए थे और वहां से गुजरात के सूरत लौट रहे थे। तीनों साधु जूना अखाड़े से जुड़े हैं। अखाड़े के साधुओं का दावा है कि उन्हें पुलिस वालों ने ही रोका और भीड़ के हवाले कर दिया। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि महाराज ने दावा किया है कि घटना मुस्लिम बहुल इलाक़े में हुई, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि यह हत्या साधु होने के कारण एक षड्यंत्र के तहत की गई। (वीडियो नीचे देखें)

पुलिस ने बनाया मॉब लिंचिंग का केस

पुलिस ने जो जानकारी दी थी उसके मुताबिक़ गाँववालों ने तीनों साधुओं को बच्चा चोर समझकर पीटा था। ये तीनों संदिग्ध स्थिति में गड़चिंचाले के पास ढाबाड़ी-खानवेल रोड पर गाँव में घूमते पाए गए थे। पुलिस का कहना था कि “तीनों साधुओं में से ही एक ने 100 नंबर पर फ़ोन करके पुलिस को बुलाया था। लेकिन जब तक वो पहुँचे तब तक तीनों गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। उन्होंने तीनों को अस्पताल पहुंचाया लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।” पुलिस का कहना था कि उन्होंने बड़ी मुश्किल से साधुओं को भीड़ से छुड़ाया और कासा सरकारी अस्पताल लेकर गए। तीनों के शरीर पर गंभीर चोटे थी। पुलिस ने 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 302, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 और महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत मामला दर्ज कर लिया। लेकिन ताज़ा वीडियो ने पुलिस के इस सारे दावे की पोल खोल दी।

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वीडियो से सामने आई केस की सच्चाई

जूना अखाड़े से जुड़े महंत दुर्वासानंद सरस्वती ने सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो जारी किए हैं, जिनसे इस घटना की सच्चाई समझ में आती है। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि दो साधु और उनके ड्राइवर को हाइवे पर भीड़ ने घेर रखा है। पुलिस भी वहाँ पर पहुँच चुकी है। पुलिस ने उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर बचाने के बजाय बीच सड़क पर ही बिठा दिया। इस बीच चारों तरफ़ हिंसक भीड़ ने उनको घेरे रखा। पुलिस ने गाँववालों को समझाने और सच्चाई बताने के बजाय उनके दबाव में आकर साधुओं को भीड़ के हवाले कर दिया। जिसके बाद भीड़ ने बेहद निर्मम तरीक़े से तीनों को बारी-बारी मौत के घाट उतार दिया। इस पूरी घटना के दौरान पुलिस तमाशबीन बनी रही और बाद में मीडिया के लिए झूठी कहानी गढ़ दी। जूना अखाड़े के महंत दुर्वासानंद ने फ़ेसबुक पर इस घटना के बारे में एक बयान भी जारी किया है और प्रधानमंत्री से माँग की है कि दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जाए।

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इस घटना का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं, जिसमें ख़ुद पुलिसवाले साधुओं को भीड़ के हवाले कर रहे हैं, जिसके बाद तीनों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए दोषी पुलिसवालों पर कार्रवाई की माँग की है। उन्होंने इस मामले के पीछे सांप्रदायिक षड्यंत्र का संदेह भी जताया क्योंकि घटना मुस्लिम बहुल इलाक़े में हुई और इसीलिए पुलिस और महाराष्ट्र सरकार मामले की लीपापोती में जुटी है।

फ़िलहाल ताज़ा जानकारी आने तक 100 से अधिक गाँववालों को इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया है। लेकिन इस पूरी घटना के वीडियो ने महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की सच्चाई को एक बार फिर से उजागर कर दिया है।

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